Monday, June 13, 2011

दिशाहीन आन्दोलन की दर्दनाक मौत...

मैंने पिछले पन्नो में अन्ना हजारे जी के सत्याग्रह के समय यह चेतावनी दी थी की ,इस आन्दोलन को कुछ लोग अपनी महत्वाकांक्षा से दिशाहीन कर देना चाहते हैं...बाबा रामदेव का तथाकथित आन्दोलन इसबात का द्योतक है..मैं कई बार ये सोचता हूँ की जो लोग खुद ही धन अर्जन की नाना विधियों का प्रयोग कर खाकपति से अरबपति हो गए वे भष्टाचार की आग पर अपनी स्वार्थ की रोटियां ही तो सेंकना चाहते हैं ...उनका प्रयास किसी गरीब के मुंह में निवाला देने का नहीं वरन एक राजनीतिक यात्रा की है ,जिसका अंत किसी भ्रस्ताचार रुपी महिषासुर के वध से नहीं, वरन सत्ता के शीर्ष पर सुशोभित हो अपने स्वार्थी प्राण को आयाम देने की है॥
बाबा की परिसंपत्तियां जो ट्रस्ट के नाम पर है वो लगभग ११०० कड़ोड़ की हैं..उनका कहना है की सारे दान दिए गए हैं भक्तों के द्वारा...मैं बाबा के कथन पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगता, न ही उनकी निष्ठां पर...पर मेरा प्रश्न उनके तरीके को लेकर है...
अगर बाबा को काले धन की इतनी ही चिंता है तो जो भी उनके शिष्य गण उन्हें दान देते हैं, बाबा को उनसे पूछना था की यह दान काले धन का हिस्सा तो नहीं...बाबा दान लेते वक़्त अगर काले धन की चिंता करते तो शायद आज उनका साम्राज्य १०० कड़ोड़ का भी नहीं होता...यह दोहरी प्रणाली ही है न, की दान का रंग काला नहीं पर उनके दान के अलावे सारे धन काले...
मुझे यह बात समझ में आती ही नहीं की हर चीज़ के लिए हम सरकार का मुंह क्यूँ देखते...क्यूँ नहीं हम अपने को अनुशाषित कर एक उदहारण प्रस्तुत करते और सरकार का हाथ मज़बूत करते....मैंने पहले भी कहा है की अगर हम सभी खुद को संयमित कर लें तो सारी समस्याओं का निदान हो जाए... पर ऐसा होता नहीं...सड़क पे पान खा के थूकते हम हैं,और सफाई की कामना सरकार से करते हैं...सारे के सारे व्यवसायी किसी न किसी तरह से टैक्स की चोरी करते, पर सुविधाएं वैश्विक स्तर की सरकार से मांगते...गरीब जनता को दूहने का कोई मौका हम नहीं छोड़ते, पर उत्तरदायी कौन, तो सरकार...मिलावट हर चीज़ में की जाति,पर गाली किसे तो सरकार को॥
मैं जानता हूँ, अगर बाबा रामदेव ,देश की अनगिनत जनता को योग और प्राणायाम की शिक्षा देकर एक योगिक क्रांति ला सकते हैं तो क्या वे उन्ही योगिक क्रिया में तल्लीन असंख्य जनता को अनुशाशन और नैतिक योग की शिक्षा नहीं दे सकते...अगर वे अपने सारे अनुयायिओं से सिर्फ इमानदारी का प्राण ले लें तो शायद बहुत हद तक देश का उद्धार हो जाए...
उपनिषद् में भी कहा गया है की,
"Like the butter hidden in milk, the Pure Consciousness resides in every being। That ought to be constantly churned out by the churning rod of the mind. "
बाबा जी ने उपनिषद के इस ज्ञान को नहीं समझा...मेरा मानना है की बाबा रामदेव ने अपनी हठधर्मिता और महत्वाकांक्षा की पूर्ती हेतु अन्ना हाज़रे द्वारा किये जा रहे आन्दोलन को भी दिशाहीन कर दिया...अगर वे थोडा भी संयम बरतते और सरकार को धीरे धीरे यह कन्विंस करने की कोशिश करते और आन्दोलन की दिशा को दिग्भ्रमित करने की कोशिश न करते तो शायद आज न तो सरकार भ्रष्टचार का अचार बना रही होती और न ही उस अचार को लोकपाल बिल के रूप में लाकर जनता को गुमराह...
बेचारे अन्ना को क्या पता की उनके आन्दोलन को उन्ही के कुछ शिखंडियों ने दर्दनाक मौत के हवाले कर दिया...
और बाबा जी अपनी महलनुमा कुटिया में बैठ ये शेर पढ़ रहे हों शायद
" एक कदम उठा था गलत राह- ए- शौक में ,
मंजिल तमाम उम्र मुझे ढूंढती रही।"

2 comments:

  1. Absolutely correct and realistic. We never watch ourselves but depend on others for taking care of our battles. May be we are a soft society and do not wish to carry the cross.

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