Friday, April 8, 2011

भ्रष्ट्र तंत्र और उपवास का मंत्र

दिल्ली में अन्ना अन्न त्याग कर चुके...मांग बहुत छोटी है की भ्रष्टाचार उन्मूलन हेतु लोकपाल बिल लाया जाये जिसका मसौदा देश के कुछ जागरूक विधि निर्माताओं की मदद से तैयार किया गया है। उनके साथ देश का पूरा जन मानस उमड़ आया है...सरकार हैरान है और भ्रष्ट तंत्र के संचालक परेशान।

मैं जहां उनके इस भागीरथ प्रयास की सराहना करता हूँ वहीं मेरी भी परेशानी ये है की कहीं बहती गंगा में हाथ धोने कई मौका परस्त राजनीतिज्ञ इस जन आंदोलन को कहीं दिशाहीन न कर दें....दो बड़े राजनीतिज्ञों का वहाँ पहुँचना और मौके का फायदा उठाने का प्रयास इसी डर को चिन्हित करता है...हालांकि जनता ने उन्हे भागा दिया पर चूंकि वो नामचीन थे और भ्रष्ट तंत्र के नुमाइंदे भी इसलिए उनको पहचानना आसान था।पर डर यह है की भीड़ में ऐसे अंजान भ्रष्ट लोग भी हो सकते हैं जिन्हें पहचानना मुश्किल होगा। कई बड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं मसलन मेधा पाटकर जी आदि का डर वाजिब है...समय का तक़ाज़ा है की हम इस आंदोलन से वैसे तत्व को नहीं जुडने दें जो कहीं न कहीं से भ्रष्ट तंत्र के नुमाइंदे रहे हों।

दूसरी बात हमारे देश की मीडिया को भी काफी सतर्क रहना होगा।अपनी खबर को रोचक बनाने की होड में वे सिर्फ उन राजनीतिज्ञों को ही विचारों के आदान प्रदान के लिए आमंत्रित करते जो उसी तंत्र के हिस्सा हैं जिनके विरुद्ध अन्ना ने आवाज़ उठाई है...उनको झूठ मूठ का महत्व देकर मीडिया कर्मी कहीं न कहीं इस आंदोलन की सफलता को बाधित कर रहे अनजाने ही सही।

इस विषय पर काफी कुछ लिखा जा सकता और भाषण दिया जा सकता॥पर यह समय न तो लिखने का है और न ही भाषण देने का। कोई भी जन आंदोलन तभी सफल हो सकता जब उसको दिशा देने वाले लोग स्वयं अनुशाशित हों और उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा संदेह के परे। हम सब जो इस आंदोलन को सफल बनाने को भरसक प्रयास कर रहे वो अपने नैतिक और चारित्रिक बल को माप लें क्यूंकी हमारी कोई भी कमजोरी अन्ना के इस भागीरथ प्रयास में बाधक हो जा सकती है।

यह प्रण का समय है और समय है अपने को आग में पका कंचन होने का॥ कबीर दास (अन्ना हज़ारे) ने लुकाठी हाथ में ले लिया है...चलिये हम अपना घर( अपना स्वार्थ) इस देश के लिए जलाएँ। खुद से यह प्रण करें की हम कभी कोई गलत काम नहीं करेंगे। कभी किसी हाल में भी ईमान का साथ बही छोड़ेंगे। कभी भी अपने मूल्यों के साथ सम्झौता नहीं करेंगे। अन्ना के इस प्रयास को शायद हमारे इस प्रण से कुछ वेग / गति मिले।

यह कहा जाता है की , “एतदृश्य पस्तस्य सकशादगजन्मना । स्वं स्वं चरित्रम शिक्षरन प्रिथीव्यां सर्वमानवाह॥ ” (All the people over the earth (Pruthiwyam Sarvamanavaha) should take lessons about living and building their characters from the ancestors (Rishis and Saints) (Agrajanmanaha) who took birth in this land, Nation। (Etaddesh prasootasya) )


जय हो...

-नीहार ,चंडीगढ़, दिनांक 08/04/2011

9 comments:

  1. samsamyik....sarthak lekh... prabhavi

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  2. bahut sahi kaha aapne.jab tak hum khud ko nahi sudharenge tab tak kuch nahi hoga.suruaat khud se karni hogi.

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  3. बिलकुल सटीक और सौ टके की बात कही है आपने अपने लेख में .....
    बिना ईमानदार हुए और स्वयं को भ्रष्टाचार से अलग किये 'भ्रष्टाचार विरोध' का राग अलापना व्यर्थ तो है ही , स्वयं को और देश को धोखा देना है |

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  4. bahut badhiya post rahi ,ye kadam hame nai raah ki tarah le jaayegj .

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  5. आप सबों को मेरा शतशः धन्यवाद...

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  6. एक अच्छा स्वस्थ एवं महत्वपूर्ण चिन्तन...

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  7. sarthak lekhan .

    sabheeko shuruaat swayam se karnee hogee .

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  8. Sir, this post is really thought provoking and very timely

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  9. विजय जी, बड़ा कठिन प्रण आपने लाद दिया...ऊपर से नीचे तक जिस देश में भ्रष्टाचार को नमक जितना खाने की हिदायत दी जाती है...लोगों ने शायद ये मान लिया है कि इस ब्लड प्रेशर के साथ ही जीना होगा...अन्ना के साथ जो जन सैलाब दिख रहा है...उतने लोग भी अगर भ्रष्टाचार से लड़ने का संकल्प लेलें तो ये बुराई हमेशा के लिए ख़तम समझिये...

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