मैंने पिछले पन्नो में अन्ना हजारे जी के सत्याग्रह के समय यह चेतावनी दी थी की ,इस आन्दोलन को कुछ लोग अपनी महत्वाकांक्षा से दिशाहीन कर देना चाहते हैं...बाबा रामदेव का तथाकथित आन्दोलन इसबात का द्योतक है..मैं कई बार ये सोचता हूँ की जो लोग खुद ही धन अर्जन की नाना विधियों का प्रयोग कर खाकपति से अरबपति हो गए वे भष्टाचार की आग पर अपनी स्वार्थ की रोटियां ही तो सेंकना चाहते हैं ...उनका प्रयास किसी गरीब के मुंह में निवाला देने का नहीं वरन एक राजनीतिक यात्रा की है ,जिसका अंत किसी भ्रस्ताचार रुपी महिषासुर के वध से नहीं, वरन सत्ता के शीर्ष पर सुशोभित हो अपने स्वार्थी प्राण को आयाम देने की है॥
बाबा की परिसंपत्तियां जो ट्रस्ट के नाम पर है वो लगभग ११०० कड़ोड़ की हैं..उनका कहना है की सारे दान दिए गए हैं भक्तों के द्वारा...मैं बाबा के कथन पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगता, न ही उनकी निष्ठां पर...पर मेरा प्रश्न उनके तरीके को लेकर है...
अगर बाबा को काले धन की इतनी ही चिंता है तो जो भी उनके शिष्य गण उन्हें दान देते हैं, बाबा को उनसे पूछना था की यह दान काले धन का हिस्सा तो नहीं...बाबा दान लेते वक़्त अगर काले धन की चिंता करते तो शायद आज उनका साम्राज्य १०० कड़ोड़ का भी नहीं होता...यह दोहरी प्रणाली ही है न, की दान का रंग काला नहीं पर उनके दान के अलावे सारे धन काले...
मुझे यह बात समझ में आती ही नहीं की हर चीज़ के लिए हम सरकार का मुंह क्यूँ देखते...क्यूँ नहीं हम अपने को अनुशाषित कर एक उदहारण प्रस्तुत करते और सरकार का हाथ मज़बूत करते....मैंने पहले भी कहा है की अगर हम सभी खुद को संयमित कर लें तो सारी समस्याओं का निदान हो जाए... पर ऐसा होता नहीं...सड़क पे पान खा के थूकते हम हैं,और सफाई की कामना सरकार से करते हैं...सारे के सारे व्यवसायी किसी न किसी तरह से टैक्स की चोरी करते, पर सुविधाएं वैश्विक स्तर की सरकार से मांगते...गरीब जनता को दूहने का कोई मौका हम नहीं छोड़ते, पर उत्तरदायी कौन, तो सरकार...मिलावट हर चीज़ में की जाति,पर गाली किसे तो सरकार को॥
मैं जानता हूँ, अगर बाबा रामदेव ,देश की अनगिनत जनता को योग और प्राणायाम की शिक्षा देकर एक योगिक क्रांति ला सकते हैं तो क्या वे उन्ही योगिक क्रिया में तल्लीन असंख्य जनता को अनुशाशन और नैतिक योग की शिक्षा नहीं दे सकते...अगर वे अपने सारे अनुयायिओं से सिर्फ इमानदारी का प्राण ले लें तो शायद बहुत हद तक देश का उद्धार हो जाए...
उपनिषद् में भी कहा गया है की,
"Like the butter hidden in milk, the Pure Consciousness resides in every being। That ought to be constantly churned out by the churning rod of the mind. "
बाबा जी ने उपनिषद के इस ज्ञान को नहीं समझा...मेरा मानना है की बाबा रामदेव ने अपनी हठधर्मिता और महत्वाकांक्षा की पूर्ती हेतु अन्ना हाज़रे द्वारा किये जा रहे आन्दोलन को भी दिशाहीन कर दिया...अगर वे थोडा भी संयम बरतते और सरकार को धीरे धीरे यह कन्विंस करने की कोशिश करते और आन्दोलन की दिशा को दिग्भ्रमित करने की कोशिश न करते तो शायद आज न तो सरकार भ्रष्टचार का अचार बना रही होती और न ही उस अचार को लोकपाल बिल के रूप में लाकर जनता को गुमराह...
बेचारे अन्ना को क्या पता की उनके आन्दोलन को उन्ही के कुछ शिखंडियों ने दर्दनाक मौत के हवाले कर दिया...
और बाबा जी अपनी महलनुमा कुटिया में बैठ ये शेर पढ़ रहे हों शायद
" एक कदम उठा था गलत राह- ए- शौक में ,
मंजिल तमाम उम्र मुझे ढूंढती रही।"
samay ke hastakshar
Monday, June 13, 2011
Friday, April 8, 2011
भ्रष्ट्र तंत्र और उपवास का मंत्र
दिल्ली में अन्ना अन्न त्याग कर चुके...मांग बहुत छोटी है की भ्रष्टाचार उन्मूलन हेतु लोकपाल बिल लाया जाये जिसका मसौदा देश के कुछ जागरूक विधि निर्माताओं की मदद से तैयार किया गया है। उनके साथ देश का पूरा जन मानस उमड़ आया है...सरकार हैरान है और भ्रष्ट तंत्र के संचालक परेशान।
मैं जहां उनके इस भागीरथ प्रयास की सराहना करता हूँ वहीं मेरी भी परेशानी ये है की कहीं बहती गंगा में हाथ धोने कई मौका परस्त राजनीतिज्ञ इस जन आंदोलन को कहीं दिशाहीन न कर दें....दो बड़े राजनीतिज्ञों का वहाँ पहुँचना और मौके का फायदा उठाने का प्रयास इसी डर को चिन्हित करता है...हालांकि जनता ने उन्हे भागा दिया पर चूंकि वो नामचीन थे और भ्रष्ट तंत्र के नुमाइंदे भी इसलिए उनको पहचानना आसान था।पर डर यह है की भीड़ में ऐसे अंजान भ्रष्ट लोग भी हो सकते हैं जिन्हें पहचानना मुश्किल होगा। कई बड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं मसलन मेधा पाटकर जी आदि का डर वाजिब है...समय का तक़ाज़ा है की हम इस आंदोलन से वैसे तत्व को नहीं जुडने दें जो कहीं न कहीं से भ्रष्ट तंत्र के नुमाइंदे रहे हों।
दूसरी बात हमारे देश की मीडिया को भी काफी सतर्क रहना होगा।अपनी खबर को रोचक बनाने की होड में वे सिर्फ उन राजनीतिज्ञों को ही विचारों के आदान प्रदान के लिए आमंत्रित करते जो उसी तंत्र के हिस्सा हैं जिनके विरुद्ध अन्ना ने आवाज़ उठाई है...उनको झूठ मूठ का महत्व देकर मीडिया कर्मी कहीं न कहीं इस आंदोलन की सफलता को बाधित कर रहे अनजाने ही सही।
इस विषय पर काफी कुछ लिखा जा सकता और भाषण दिया जा सकता॥पर यह समय न तो लिखने का है और न ही भाषण देने का। कोई भी जन आंदोलन तभी सफल हो सकता जब उसको दिशा देने वाले लोग स्वयं अनुशाशित हों और उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा संदेह के परे। हम सब जो इस आंदोलन को सफल बनाने को भरसक प्रयास कर रहे वो अपने नैतिक और चारित्रिक बल को माप लें क्यूंकी हमारी कोई भी कमजोरी अन्ना के इस भागीरथ प्रयास में बाधक हो जा सकती है।
यह प्रण का समय है और समय है अपने को आग में पका कंचन होने का॥ कबीर दास (अन्ना हज़ारे) ने लुकाठी हाथ में ले लिया है...चलिये हम अपना घर( अपना स्वार्थ) इस देश के लिए जलाएँ। खुद से यह प्रण करें की हम कभी कोई गलत काम नहीं करेंगे। कभी किसी हाल में भी ईमान का साथ बही छोड़ेंगे। कभी भी अपने मूल्यों के साथ सम्झौता नहीं करेंगे। अन्ना के इस प्रयास को शायद हमारे इस प्रण से कुछ वेग / गति मिले।
यह कहा जाता है की , “एतदृश्य पस्तस्य सकशादगजन्मना । स्वं स्वं चरित्रम शिक्षरन प्रिथीव्यां सर्वमानवाह॥ ” (All the people over the earth (Pruthiwyam Sarvamanavaha) should take lessons about living and building their characters from the ancestors (Rishis and Saints) (Agrajanmanaha) who took birth in this land, Nation। (Etaddesh prasootasya) )
जय हो...
-नीहार ,चंडीगढ़, दिनांक 08/04/2011
Wednesday, September 1, 2010
जय हो....
इधर मेरी रेल यात्रायें बढ़ गयी हैं....पत्नी के मुंबई से कोलकाता स्थानान्तरण के पश्चात्त लगभग हर सप्ताहांत मेरी यात्रा रेल विभाग की मेहरबानियों पर निर्भर है...पिछले कुछ एक महीनों से रात्रि में रेल का परिचालन बंद है और दिन में कौन सी ट्रेन कब और कहाँ से चलेगी यह कोई ज्योतिषी भी भविष्य कथन नहीं कर सकते। जय हो....
इन दिनों जब भी मैं रेल की यात्रा करता हूँ तो होठों पे ईश्वर का नाम ज्यादा रहता है.मुझे हर एक मुसाफिर के चेहरे में किसी माओवादी का चेहरा नज़र आता है,किसी के ठहाकों में , भारत सरकार की नपुंसकता पर एक विद्रूप सी हंसी की झांकी दिखती है....प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े मुसाफिरों के चेहरे पर लाचार सी ऊब दिखायी देती है.....सरकार के सारे तंत्र किसी राजनीति के षड़यंत्र के हिस्सेदार नज़र आते हैं....फिर भी जय हो....
ट्रैक असुरक्षित.....सड़क अँधेरा और अगर कहीं आप फंस गए तो अनाप शनाप किराए से लूटते हुए वाहन चालक...सब के सब आम आदमी की पीड़ा को अपनी रोज़ी रोटी का साधन बनाने में तल्लीन....फिर भी जय हो...
पूरी की पूरी सरकार घुटनों के बल....निर्बल....चंद खतरनाक इरादों के माओवादी हो gaye सबल...घूमते जंगल जंगल पहाड़ पहाड़ सदल बल ....घी पीते ओढ़ के कम्बल....सब के सब हैं क्रिमिनल .....सरकार चुप है...देश में अँधेरा घुप्प है....फिर भी जय हो...
संसद में पक्ष प्रतिपक्ष हैं मुखर....सुनाई देते हैं सिर्फ विरोध के स्वर...सब तरफ आतंक ही आतंक....चोर उचक्के सब हैं दबंग .....पर एक बात पर सब हैं एक....तनख्वाह बढे सुरसा मुख समान...वाह नेता जी...सिर्फ तनख्वाह ही क्यूँ पूरा देश ही खाईये...."आम आदमी" बड़े लज़ीज़ हैं...उन्हें नोचिए,खसोटिये और हज़म कर जाइए....जय हो।
इन दिनों जब भी मैं रेल की यात्रा करता हूँ तो होठों पे ईश्वर का नाम ज्यादा रहता है.मुझे हर एक मुसाफिर के चेहरे में किसी माओवादी का चेहरा नज़र आता है,किसी के ठहाकों में , भारत सरकार की नपुंसकता पर एक विद्रूप सी हंसी की झांकी दिखती है....प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े मुसाफिरों के चेहरे पर लाचार सी ऊब दिखायी देती है.....सरकार के सारे तंत्र किसी राजनीति के षड़यंत्र के हिस्सेदार नज़र आते हैं....फिर भी जय हो....
ट्रैक असुरक्षित.....सड़क अँधेरा और अगर कहीं आप फंस गए तो अनाप शनाप किराए से लूटते हुए वाहन चालक...सब के सब आम आदमी की पीड़ा को अपनी रोज़ी रोटी का साधन बनाने में तल्लीन....फिर भी जय हो...
पूरी की पूरी सरकार घुटनों के बल....निर्बल....चंद खतरनाक इरादों के माओवादी हो gaye सबल...घूमते जंगल जंगल पहाड़ पहाड़ सदल बल ....घी पीते ओढ़ के कम्बल....सब के सब हैं क्रिमिनल .....सरकार चुप है...देश में अँधेरा घुप्प है....फिर भी जय हो...
संसद में पक्ष प्रतिपक्ष हैं मुखर....सुनाई देते हैं सिर्फ विरोध के स्वर...सब तरफ आतंक ही आतंक....चोर उचक्के सब हैं दबंग .....पर एक बात पर सब हैं एक....तनख्वाह बढे सुरसा मुख समान...वाह नेता जी...सिर्फ तनख्वाह ही क्यूँ पूरा देश ही खाईये...."आम आदमी" बड़े लज़ीज़ हैं...उन्हें नोचिए,खसोटिये और हज़म कर जाइए....जय हो।
Sunday, March 7, 2010
संत कुसंगत शठ बन जाई
आज कल ढेर सारे चैनल्स बाबाओं के समाचार से पटे हुए हैं। उनकी करतूतों के बकाहन में कोई चैनल पीछे नहीं.पैर मेरी समझ में एक बात नहीं आती.ये बाबा लोग इतने वर्षों से इस तरह के दुष्कर्म में लीन रह रहे, और कोई भी समाचार पत्रिका या न्यूज़ चैनल उनके इस तेज़ी से बढ़ते हुए प्रभाव को उन्देखा करते हुए तब तक उस पर अपनी बयान बाजी नहीं करते या तब तक उसका पोस्टमोर्टम नहीं करते जब तक, कोई एक अन्य चैनल उस पर विवेचना शुरू नहीं कर देता। बस शुरू हो जाती है उसके बाद सबसे तेज़ चैनल कहलाने की दौड़।
खैर मुद्दे से भटकना ठीक नहीं.हमारे देश में सबसे आसान काम है बाबा बनना या राजनेता बनना। बाबा इसलिए की अन्धविश्वास की मारी भारतीय जनता बिचारी,इन सादे गले विचारों की कलुषता वाले बाबाओं को अपना सर्वस्व निछावर करने में एक मिनट देर नहीं करती.दूसरी और बिना मिहनत के एक रात में शारीर बेच कर पैसा कमाने का सुख बहुत लड़कियां संवरण नहीं कर पाती.मेरे लिए यह मानना कठिन है की ५०० लड़कियां नादान थी और फंसा ली गयी थी.जब तक हम अपनी इच्छाओं को कंट्रोल नहीं करते ऐसे ही इच्छाधारी बाबाओं का चक्कर चलता रहेगा। लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए ऐसे बाबाओं के चक्कर में पड़ते हैं और अपना सब कुछ गवां बैठते हैं।
सबसे ज्यादा ज़रूरी है अपनी इच्छा को कण्ट्रोल करना। हम प्रवचन सुनते हैं और अपने कान नाक आँख सब बंद कर लेते हैं.हम देखते नहीं इन बाबाओं का लाइफस्टाइल .हम उनकी आदतों के बारे में पता नहीं करते.हम अपनी सारे ज्ञान इन्द्रियों को बंद कर देते हैं और आँख के रहते हुए अंधे हो जाते हैं.आप खुद ही सोचिये की मामूली सा सब्जी और भाजी खरीदते समय हम एक एक को चुनते हैं और अपने शब्दों में कोई भी खरीद दारी बिना ठोक बजा कर नहीं करते । हम जब बेटे और बेटियों के लिए स्कूल कॉलेज छंटे हैं तो कोशिश करते हैं की सबसे अच्छा हो.हम उनकी शादी करते हैं तो पूरा पता करते हैं वर वधु का , उनके परिवार का। घर खरीदते वक़्त हम कई घर देखते हैं,निर्माताओं से बातें करते हैं। कोई भी transaction हम बिना ठोक बजाये नहीं करते। फिर जीवन का इतना अहम् फैसला हम क्यूँ इतनी आसानी से कर लेते हैं की कोई सडा बाबा हमारे जिंदगी को जब चाहे उलट पुलट दे।पुत्र की चाह में नारियां बाबाओं के द्वार पहुँच जाती हैं,पत्नी के संताप से और पति की बेवफाई से पीड़ित पत्नी इन बाबाओं के दरवाज़े मत्थे टेकते हैं.नेता, प्रणेता, अभिनेता, समाज के अभिजात्य वर्ग के लोग सन इनके दरबार में तब तक जाते हैं जब तक ये मुंह दिखने के लायक नहीं रहते।मेरी समझ में एक बात नहीं आती की जिस व्यक्ति को शान्ति घर में और खुद से नहीं मिलती उसे बाबा के दरबार में शांति कैसे मिलती है.जो बाबा मनुष्य को माया त्यागने का ज्ञान देते हैं ,वो खुद माया में कितने लिपटे हैं यह हमें क्यूँ नहीं दीखता।
हमें जागना होगा और हमें अपनी साड़ी इन्द्रियों की जागरूकता बनाये रखनी होगी.वर्ना ऐसे बाबा हमें समय समय पर यूँ ही लूटते रहेंगे...सवाल धन या समय के लुटे जाने का नहीं....सवाल है अपनी आस्था के हर आयाम के चूर चूर हो जाने का...विश्वास का जो हमारे लिए सबसे बड़ा संबल है।
मैंने कभी एक बार रामचरितमानस की पेरोडी banayee थी और लिखा था...
" शठ सुधरहिं सत संगति पायी,
संत कुसंगत शठ बन जाई।"
तो उत्तिष्ठ भारत....
खैर मुद्दे से भटकना ठीक नहीं.हमारे देश में सबसे आसान काम है बाबा बनना या राजनेता बनना। बाबा इसलिए की अन्धविश्वास की मारी भारतीय जनता बिचारी,इन सादे गले विचारों की कलुषता वाले बाबाओं को अपना सर्वस्व निछावर करने में एक मिनट देर नहीं करती.दूसरी और बिना मिहनत के एक रात में शारीर बेच कर पैसा कमाने का सुख बहुत लड़कियां संवरण नहीं कर पाती.मेरे लिए यह मानना कठिन है की ५०० लड़कियां नादान थी और फंसा ली गयी थी.जब तक हम अपनी इच्छाओं को कंट्रोल नहीं करते ऐसे ही इच्छाधारी बाबाओं का चक्कर चलता रहेगा। लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए ऐसे बाबाओं के चक्कर में पड़ते हैं और अपना सब कुछ गवां बैठते हैं।
सबसे ज्यादा ज़रूरी है अपनी इच्छा को कण्ट्रोल करना। हम प्रवचन सुनते हैं और अपने कान नाक आँख सब बंद कर लेते हैं.हम देखते नहीं इन बाबाओं का लाइफस्टाइल .हम उनकी आदतों के बारे में पता नहीं करते.हम अपनी सारे ज्ञान इन्द्रियों को बंद कर देते हैं और आँख के रहते हुए अंधे हो जाते हैं.आप खुद ही सोचिये की मामूली सा सब्जी और भाजी खरीदते समय हम एक एक को चुनते हैं और अपने शब्दों में कोई भी खरीद दारी बिना ठोक बजा कर नहीं करते । हम जब बेटे और बेटियों के लिए स्कूल कॉलेज छंटे हैं तो कोशिश करते हैं की सबसे अच्छा हो.हम उनकी शादी करते हैं तो पूरा पता करते हैं वर वधु का , उनके परिवार का। घर खरीदते वक़्त हम कई घर देखते हैं,निर्माताओं से बातें करते हैं। कोई भी transaction हम बिना ठोक बजाये नहीं करते। फिर जीवन का इतना अहम् फैसला हम क्यूँ इतनी आसानी से कर लेते हैं की कोई सडा बाबा हमारे जिंदगी को जब चाहे उलट पुलट दे।पुत्र की चाह में नारियां बाबाओं के द्वार पहुँच जाती हैं,पत्नी के संताप से और पति की बेवफाई से पीड़ित पत्नी इन बाबाओं के दरवाज़े मत्थे टेकते हैं.नेता, प्रणेता, अभिनेता, समाज के अभिजात्य वर्ग के लोग सन इनके दरबार में तब तक जाते हैं जब तक ये मुंह दिखने के लायक नहीं रहते।मेरी समझ में एक बात नहीं आती की जिस व्यक्ति को शान्ति घर में और खुद से नहीं मिलती उसे बाबा के दरबार में शांति कैसे मिलती है.जो बाबा मनुष्य को माया त्यागने का ज्ञान देते हैं ,वो खुद माया में कितने लिपटे हैं यह हमें क्यूँ नहीं दीखता।
हमें जागना होगा और हमें अपनी साड़ी इन्द्रियों की जागरूकता बनाये रखनी होगी.वर्ना ऐसे बाबा हमें समय समय पर यूँ ही लूटते रहेंगे...सवाल धन या समय के लुटे जाने का नहीं....सवाल है अपनी आस्था के हर आयाम के चूर चूर हो जाने का...विश्वास का जो हमारे लिए सबसे बड़ा संबल है।
मैंने कभी एक बार रामचरितमानस की पेरोडी banayee थी और लिखा था...
" शठ सुधरहिं सत संगति पायी,
संत कुसंगत शठ बन जाई।"
तो उत्तिष्ठ भारत....
Wednesday, June 3, 2009
समय के हस्ताक्छर
पता नहीं क्यूँ मुझे ये ख्याल आता है की जो हम बोते हैं वही काट ते हैं...मसलन अभी का ही ताज़ा समाचार उठा लीजिये । हर चैनल हर अखबार इस ख़बर से पता है की पाकिस्तान में हफीज सईद को रिहा कर दिया गया...हमारे देश का हर अख़बार चिल्ला चिल्ला कर, हर चैनल शोर मचा कर और हर वह सख्स जो आतंकवाद के खिलाफ होने का दिखावा करता है , यह दर्शाना चाहता है की पाकिस्तान सीरियस नही है आतंक के खिलाफ लारने को...मैं भी यही मानता हूँ....पर उनकी सोच और मेरी सोच में एक अन्तर है वोह ये की मैं ये भी मानता हूँ की हमारे देश में भी आतंक से लारने वाले सिर्फ़ दिखावा करते हैं , पैर सच में वो भी गंभीर नही....वरना संसद पर आक्रमण के साजिश करता जिसे सर्वोच्च न्यायलय ने फांसी की सजा दी उसे भारत सरकार फांसी पे लटका क्यूँ नही रही.....इतने दिनों बाद भी .....क्या भारत सरकार सच में गंभीर है?...अपने भीटर झांकिए और सवाल का जवाब पाइए।
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सारे लोग परेशान हैं की ऑस्ट्रेलिया में भारतीय विद्यार्थियों को मारा पीटा जा रहा है.....भाई परेशान होने की क्या बात है....उन्होंने ये सब हमसे ही तो सीखा है....यहाँ मुंबई में बिहारी विद्यार्थियों को जब पीटा गया तो किसी चैनल या अखबार वाले या राज नेता को दर्द नही हुआ....क्यूँ भाई,आख़िर ऑस्ट्रेलिया वालों को हमने ही तो सिखाया की हम एक नही अनेक हैं.....
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सारे लोग परेशान हैं की ऑस्ट्रेलिया में भारतीय विद्यार्थियों को मारा पीटा जा रहा है.....भाई परेशान होने की क्या बात है....उन्होंने ये सब हमसे ही तो सीखा है....यहाँ मुंबई में बिहारी विद्यार्थियों को जब पीटा गया तो किसी चैनल या अखबार वाले या राज नेता को दर्द नही हुआ....क्यूँ भाई,आख़िर ऑस्ट्रेलिया वालों को हमने ही तो सिखाया की हम एक नही अनेक हैं.....
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