Wednesday, September 1, 2010

जय हो....

इधर मेरी रेल यात्रायें बढ़ गयी हैं....पत्नी के मुंबई से कोलकाता स्थानान्तरण के पश्चात्त लगभग हर सप्ताहांत मेरी यात्रा रेल विभाग की मेहरबानियों पर निर्भर है...पिछले कुछ एक महीनों से रात्रि में रेल का परिचालन बंद है और दिन में कौन सी ट्रेन कब और कहाँ से चलेगी यह कोई ज्योतिषी भी भविष्य कथन नहीं कर सकते। जय हो....
इन दिनों जब भी मैं रेल की यात्रा करता हूँ तो होठों पे ईश्वर का नाम ज्यादा रहता है.मुझे हर एक मुसाफिर के चेहरे में किसी माओवादी का चेहरा नज़र आता है,किसी के ठहाकों में , भारत सरकार की नपुंसकता पर एक विद्रूप सी हंसी की झांकी दिखती है....प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े मुसाफिरों के चेहरे पर लाचार सी ऊब दिखायी देती है.....सरकार के सारे तंत्र किसी राजनीति के षड़यंत्र के हिस्सेदार नज़र आते हैं....फिर भी जय हो....
ट्रैक असुरक्षित.....सड़क अँधेरा और अगर कहीं आप फंस गए तो अनाप शनाप किराए से लूटते हुए वाहन चालक...सब के सब आम आदमी की पीड़ा को अपनी रोज़ी रोटी का साधन बनाने में तल्लीन....फिर भी जय हो...
पूरी की पूरी सरकार घुटनों के बल....निर्बल....चंद खतरनाक इरादों के माओवादी हो gaye सबल...घूमते जंगल जंगल पहाड़ पहाड़ सदल बल ....घी पीते ओढ़ के कम्बल....सब के सब हैं क्रिमिनल .....सरकार चुप है...देश में अँधेरा घुप्प है....फिर भी जय हो...
संसद में पक्ष प्रतिपक्ष हैं मुखर....सुनाई देते हैं सिर्फ विरोध के स्वर...सब तरफ आतंक ही आतंक....चोर उचक्के सब हैं दबंग .....पर एक बात पर सब हैं एक....तनख्वाह बढे सुरसा मुख समान...वाह नेता जी...सिर्फ तनख्वाह ही क्यूँ पूरा देश ही खाईये...."आम आदमी" बड़े लज़ीज़ हैं...उन्हें नोचिए,खसोटिये और हज़म कर जाइए....जय हो।

Sunday, March 7, 2010

संत कुसंगत शठ बन जाई

आज कल ढेर सारे चैनल्स बाबाओं के समाचार से पटे हुए हैं। उनकी करतूतों के बकाहन में कोई चैनल पीछे नहीं.पैर मेरी समझ में एक बात नहीं आती.ये बाबा लोग इतने वर्षों से इस तरह के दुष्कर्म में लीन रह रहे, और कोई भी समाचार पत्रिका या न्यूज़ चैनल उनके इस तेज़ी से बढ़ते हुए प्रभाव को उन्देखा करते हुए तब तक उस पर अपनी बयान बाजी नहीं करते या तब तक उसका पोस्टमोर्टम नहीं करते जब तक, कोई एक अन्य चैनल उस पर विवेचना शुरू नहीं कर देता। बस शुरू हो जाती है उसके बाद सबसे तेज़ चैनल कहलाने की दौड़।
खैर मुद्दे से भटकना ठीक नहीं.हमारे देश में सबसे आसान काम है बाबा बनना या राजनेता बनना। बाबा इसलिए की अन्धविश्वास की मारी भारतीय जनता बिचारी,इन सादे गले विचारों की कलुषता वाले बाबाओं को अपना सर्वस्व निछावर करने में एक मिनट देर नहीं करती.दूसरी और बिना मिहनत के एक रात में शारीर बेच कर पैसा कमाने का सुख बहुत लड़कियां संवरण नहीं कर पाती.मेरे लिए यह मानना कठिन है की ५०० लड़कियां नादान थी और फंसा ली गयी थी.जब तक हम अपनी इच्छाओं को कंट्रोल नहीं करते ऐसे ही इच्छाधारी बाबाओं का चक्कर चलता रहेगा। लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए ऐसे बाबाओं के चक्कर में पड़ते हैं और अपना सब कुछ गवां बैठते हैं।
सबसे ज्यादा ज़रूरी है अपनी इच्छा को कण्ट्रोल करना। हम प्रवचन सुनते हैं और अपने कान नाक आँख सब बंद कर लेते हैं.हम देखते नहीं इन बाबाओं का लाइफस्टाइल .हम उनकी आदतों के बारे में पता नहीं करते.हम अपनी सारे ज्ञान इन्द्रियों को बंद कर देते हैं और आँख के रहते हुए अंधे हो जाते हैं.आप खुद ही सोचिये की मामूली सा सब्जी और भाजी खरीदते समय हम एक एक को चुनते हैं और अपने शब्दों में कोई भी खरीद दारी बिना ठोक बजा कर नहीं करते । हम जब बेटे और बेटियों के लिए स्कूल कॉलेज छंटे हैं तो कोशिश करते हैं की सबसे अच्छा हो.हम उनकी शादी करते हैं तो पूरा पता करते हैं वर वधु का , उनके परिवार का। घर खरीदते वक़्त हम कई घर देखते हैं,निर्माताओं से बातें करते हैं। कोई भी transaction हम बिना ठोक बजाये नहीं करते। फिर जीवन का इतना अहम् फैसला हम क्यूँ इतनी आसानी से कर लेते हैं की कोई सडा बाबा हमारे जिंदगी को जब चाहे उलट पुलट दे।पुत्र की चाह में नारियां बाबाओं के द्वार पहुँच जाती हैं,पत्नी के संताप से और पति की बेवफाई से पीड़ित पत्नी इन बाबाओं के दरवाज़े मत्थे टेकते हैं.नेता, प्रणेता, अभिनेता, समाज के अभिजात्य वर्ग के लोग सन इनके दरबार में तब तक जाते हैं जब तक ये मुंह दिखने के लायक नहीं रहते।मेरी समझ में एक बात नहीं आती की जिस व्यक्ति को शान्ति घर में और खुद से नहीं मिलती उसे बाबा के दरबार में शांति कैसे मिलती है.जो बाबा मनुष्य को माया त्यागने का ज्ञान देते हैं ,वो खुद माया में कितने लिपटे हैं यह हमें क्यूँ नहीं दीखता।
हमें जागना होगा और हमें अपनी साड़ी इन्द्रियों की जागरूकता बनाये रखनी होगी.वर्ना ऐसे बाबा हमें समय समय पर यूँ ही लूटते रहेंगे...सवाल धन या समय के लुटे जाने का नहीं....सवाल है अपनी आस्था के हर आयाम के चूर चूर हो जाने का...विश्वास का जो हमारे लिए सबसे बड़ा संबल है।
मैंने कभी एक बार रामचरितमानस की पेरोडी banayee थी और लिखा था...
" शठ सुधरहिं सत संगति पायी,
संत कुसंगत शठ बन जाई।"
तो उत्तिष्ठ भारत....